बडी प्रतिमा - 1 Sudha Trivedi द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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बडी प्रतिमा - 1

बडी प्रतिमा

(1.)

“ कहमा से चलि अइल हे रधिका कहां कयले जाय हो लाल

कवने बाबा दरवजवा हो रधिका बाजइछई मिरदंग हो लाल !”

एक झुंड भरकर युवा आधुनिक लडकियां टीचर्स ट्रेंनिंग काॅलेज के गेट पर रुककर यह देहाती गीत गा रही हैं। सभी लडकियों ने ट्रेनिंग काॅलेज की यूनिफाॅर्म पहन रखी है - राजकमल की सफेद काॅटन साडियां और लाल रूबिया ब्लाउज । साडियों में तो कुछ अलग करने की संभावना नहीं है, इसीलिए इन ट्रेनी शिक्षिकाओं की सारी सृजनात्मकता और कलात्मकता उनके ब्लाउज की सिलाई पर आ थमी दिखती है। उनके कलात्मक सौंदर्य की पराकाष्ठा उनके बालों के सिंगार में भी झलक रही है। प्रतिमा चौहान के बाल उसके घुटनों तक आते हैं। उसने अपने बालों की तो लंबी चोटी बना रखी है, मगर चेहरे पर साधना कट लटें झूल रही हैं । अर्चना के बाल कटे हुए हैं। ट्रेनिंग काॅलेज के नियमों के मुताबिक वह बाल खुले नहीं रख सकती, इसीलिए उसने किसी तरह एक कठोर, अनुशासनप्रिय अभिभावक जैसे रबर बैंड में उन्हें जबर्दस्ती घुसा रखा है । आधुनिक युवाओं जैसे स्वच्छंदताप्रिय बाल रबर बैंड से निकल- निकल जा रहे हैं । इटालियन देवी सी दिखनेवाली अंजना कद में थोडी छोटी है, पर बाल उसके बेहद घने और लंबे हैं। लगता है उसकी सारी खुराक उसके बालों को लग जाती है। उसने दो चोटियां बना रखी हैं, जो उसके कंधों पर आगे की ओर को झूल रही हैं। खिलंदडे स्वभाव की डाॅली के लिए साडी संभालना ही मुश्किल का काम है, वह बालों की तो क्या सज्जा कर पाती। किसी तरह एक उंचा जूडा बना रखा है।

ये सभी लडकियां अब अपनी ट्रेनिंग लगभग पूरी कर चुकी हैं और अभी पास ही के एक बुनियादी विद्यालय से क्लास लेकर लौट रही हैं । दस-दस, बीस-बीस के झुंड में आती ये छात्राएं शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय के गेट पर आकर रुक जा रही हैं। ये अलग - अलग पांच विद्यालयों में गई थीं। दोपहर हो चली है। उतरती जनवरी है । दोपहर के धूप में अभी से तेजी आने लगी है, जिससे इन युवा, सुंदर, सलीकेदार छात्राओं के चेहरे लाल हो आए हैं।

जिस क्षेत्र में यह शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय है, उस क्षेत्र में उत्सवों के समय की एक परंपरा है। जब ब्याह शादी में औरतें देव पूजा करके घर लौटती हैं, तब घर के दरवाजे पर पहुंचकर उपरोक्त गीत गाती हैं। अपनी क्लासेज पूरी हो जाने की खुशी में हमारी ये भावी शिक्षिकाएं मौज में उसी परंपरागत गीत को अनायास गाकर बडे उल्लास का अनुभव कर रही हैं। बडी प्रतिमा इन गीतगायनों की हेड है। वह आगे की कडी जोडती है-

“ मथुरा से चली अइली हे रधिका पूसा कयले जाए हो लाल

फजली बाबा दरवजवा हे रधिका, बाजइछई मिरदंग हो साल ।”

इसके इतना कहते ही सभी लडकियां जोर -जोर से हंसने लगीं। शोर सुनकर पास ही के क्वार्टर में रहनेवाली प्राचार्या सरोज शर्मा बाहर निकल आईं । उन्हें देखकर सभी लडकियां चुप होकर सावधान हो गईं लेकिन बडी प्रतिमा फिर भी धीमी आवाज में बोलने से न चूकी –

“सरोज बउआ आ गईं।”

बडी प्रतिमा उम्र में इन सबसे बडी है। रुप रंग भी उसका बस वैसा ही- सा है। सूरत शक्ल से कमजोर लडकी, दहेज के जोर पर ससुराल में चल भी जाती है । पर,बडी प्रतिमा के पिता इतने अमीर भी नहीं हैं कि उसकी सास की कभी न मिटनेवाली दहेज की भूख को तृप्त कर सकें। बडी प्रतिमा अपनी सास को फूटी आंखों भी नहीं सुहाती है। सास के श्रवण कुमार पुत्र - उसके पति की भी इस सुगढ, कामकाजू पर सांवली पत्नी पर कोई खास श्रद्धा नहीं है। इसीलिए बडी प्रतिमा का पहनावा ओढावा इन फैशनेबल लडकियों की बराबरी का नहीं है। जो साडी उसे ट्रेनिंग काॅलेज में ऐडमीशन के समय दी गई थी, वह उसी एक साडी को धो सुखाकर अब तक पहनती आ रही है। सफेद साडी पीली पड चुकी है। उसके किनारे का चटक लाल रंग इन दो वर्षों में लगभग सफेद हो चला है। शादी के बाद लगातार शोषित किए जाने का दर्द उसके चेहरे पर छप आया है, लेकिन फिर भी वह हंसती-मुस्कुराती हुई सबमें घुली-मिली रहना चाहती है ! प्रत्यक्षतःतो उसकी सहपाठिनियां उसके इस घुलने-मिलने को आदर देती दिखती हैं, मगर परोक्ष रूप से उससे कटती ही हैं।बडी प्रतिमा अपने मजाकिया मूड में सभी को “बउआ” ही कहती है।

अभी प्राचार्या को “बउआ” कहने पर लडकियां होठों में दबी हंसी बिखेरती, अहाते के गेट के अंदर दाखिल हो गईं। सरोज शर्मा बिना कुछ बोले अपने क्वार्टर में चली गईं।

क्रमश..